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Tuesday, December 13, 2011

'मूल्य नियंत्रण के खिलाफ खड़ा दवा उद्योग'

सरकार कीमत नियंत्रण के दायरे में जहां अधिकतम दवाओं को लाने के लिए प्रतिबद्घ दिख रही है वहीं घरेलू दवा उद्योग जगत का कहना है कि दवा बनाने वाली कंपनियों की तरफ से मुनाफा कमाने का कोई भी मामला सामने नहीं आया है। मुनाफा कमाने के मामले में दवा उद्योग भी किसी अन्य औद्योगिक क्षेत्र की तरह ही है अथवा उससे नीचे ही हैं। सरकार की योजना प्रस्तावित नैशनल फार्मास्यूटिकल्स प्राइसिंग पॉलिसी के तहत 60 फीसदी से अधिक दवाओं को कीमत नियंत्रण के दायरे में लाने का है। भारत में करीब 60,000 करोड़ रुपये का दवा कारोबार है।

डिपार्टमेंट ऑफ फार्मास्यूटिकल्स को दिए गए अपने ज्ञापन में इंडियन फार्मास्यूटिक ल एलायंस (आईपीए) ने कहा है कि अगर सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों को आधार बनाकर अंतर औद्योगिक मुनाफे  (2009-10) को देखा जाए तो दवा उद्योग को शुद्घ आय पर कर चुकाने के बाद करीब औसतन 10 फीसदी का मुनाफा हुआ जबकि आरओआई (रिटर्न ऑफ इनवेस्टमेंट) पर 11 फीसदी का। आईपीए घरेलू दवा निर्माताओं की सर्वोच्च संस्था है।
आईपीए के महासचिव डी जी शाह ने कहा, 'अगर इसकी तुलना सूचना और प्रौद्योगिकी, स्टील और सौंदर्य प्रसाधन उद्योग से किया जाए तो यह किसी भी तरह से उनसे ज्यादा नहीं है। यह तुलना ज्ञान आधारित उद्योग (आईटी) से भी किया गया है वहीं दूसरी तरफ विनिर्माण उद्योग (स्टील) तथा लाइफस्टाइल (सौंदर्य प्रसाधन)  से किया गया गया है और तीनों ही स्तर पर दवा उद्योग द्वारा कमाया जाने वाला मुनाफा इनसे अधिक नहीं हैं।'
कैपिटालाइन के आंकड़ों के आधार पर बिजनेस स्टैंडर्ड रिसर्च ब्यूरों द्वारा किए गए विश्लेषण के बाद यह तथ्य सामने आया कि बाजार पूंजीकरण के आधार पर बंबई स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्घ शीर्ष 25 कंपनियों का औसत संचालन मुनाफा वर्ष 2005-11 के बीच 27.5 फीसदी रहा। वर्ष 2005 से 2011 के बीच की अवधि को घरेलू दवा कंपनियों के मुनाफे को समझने के लिए चुना गया क्योंकि इसके बाद ही भारत ने पेटेंट नियमों को बदल दिया था।

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